समझा लो खुद को कितना भी बेकसूर पर हो नही,
कि भटकते को राह भी ना दिखाया इतना मजबूर हो नही,
माना कभी काबिल ही ना हो सकते थे,
की तुझसे मुहब्बत मुकम्मल हो,
समझ जाएं तेरी सारी चुप्पियाँ,अदाकारा तुम इतने मशहूर हो नही।।
तेरी चुप्पी का कोई मतलब मैं समझता कैसे,
मुहब्बत में अंधा तेरी खामोश सवालोँ से उलझता कैसे,
दिलो-दिमाग बेकाबू ,ये प्यार ही ऐसा है,
मैं तो मदहोश था सही-गलत का भेद करता कैसे।।
Param
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