#राजनीतिक नज़रिया
हाय रे!
ये कैसी अफरा-तफरी,
जैसे कोई अबोध बालक हो,
सिख रहा हो सायकल की सवारी,
उठा रखा है सारे घर को सिर पर
हलाकान,
भाई भी बहन भी,
माँ पिता और दादा-दादी भी,
पड़ोसी और सारा गांव भी,
अरे कोई उसे सिखाता क्यों नही?
मैदान में जाने का रास्ता कोई बताता क्यों नही?
सब क्यों बने हो मूकदर्शक,
कि थक हार गए हो समझा-बुझा के,
वो है ही जिद्दी छोकरा,
अड़ियल,
किसी की नी सुनता,
कहता-करता बस अपने मन की है
ठान लिया है सायकल चलाएगा,
तो अपने घर मे ही चलाएगा,
मोहल्ले में ही चलाएगा,
Param
*सारे दलों का हाल कुछ ऐसा ही जान पड़ता है